Thursday, August 27, 2015

'मांझी'

बरसात का मौसम !! कुछ के लिए रूमानी कुछ के लिए तूफानी!! इस बरसात के मेरे दो अनुभव।
दृश्य एक:
शहर के बाहर मूसलाधार बारिश में एक लंबा ट्रैफिक जाम।कारण:बिजली का खंभा टूटकर रोड के किनारे एक मिट्टी के मकान पर गिर गया है,बिजली के तार रोड में बिखरे पड़े हैं,दोनों तरफ लोग खड़े हैं, पर भीगे हुए तारों को छेड़ने का रिस्क कौन ले? निवारण:आधे घंटे बाद जिस व्यक्ति का मकान टूटा है, वह एक लंबे बांस से तार को उठाकर बीच रोड में अधनंगे बदन इस तूफानी बारिश में दृढ़ता से खड़ा है, सभी गाड़ियां उस तार के नीचे से गुजर रही हैं,उसकी पत्नी टूटी हुई खपरैल छत से तार सम्हालने में उसकी सहायता कर रही है।इतना लंबा जाम अंततः समाप्त हुआ।
दृश्य दो:
वही मूसलाधार बारिश।शहर की एक कॉलोनी..और बिजली का वही खंभा।इस बार गिरा एक 'अंकल' के घर की बॉउंड्री वॉल पर। कॉलोनी के घरों का आवागमन बाधित। "अंकल इसे किनारे कर लेते हैं हमारी गाड़ी निकालते बन जायेगी" "अरे पागल हो क्या जब तक बिजली विभाग वाले आकर अपनी आँखों से नहीं देख लेते ये खंभा ऐसे ही रहेगा..मेरी तो बॉउंड्री वॉल गई यार तुमको गाड़ी निकालने की पड़ी है!!"
'मांझी' मिट्टी के मकान में ही रहते हैं बॉउंड्री वॉल के भीतर तो तथाकथित "टैक्स पेयर" ही रहते हैं।

Sunday, October 19, 2014

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पर शिकायती लहज़े में की गई पोस्ट,व्यंगात्मक टिप्पणियों की बाढ़ लगी रहती है. तो क्या सचमुच हम इतने नकारात्मक हैं? हममें से कोई भी स्वयं को नकारात्मक मानने से इंकार करेगा।(दूसरे भले ही हो सकते हैं) पर हम थोड़ा आत्ममंथन करें तो कब हमने अपने पड़ोस के उन प्रोफेसर अंकल के बारे में बात की जो सर्वथा संपन्न होने के बावजूद सुबह पैदल सब्जी लेने जाते हैं.…आसपास के गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और यथासंभव उनकी मदद करते हैं .हम तो उन अंकल की फोटो पोस्ट करते हैं जो गुलाबी कपड़ों में कही जा रहे थे और हम अब वो 'गे' हैं या नहीं इस पर बहस कर रहे हैं.
क्या कभी हम उन आंटी के बारे में कोई पोस्ट कर सके जिन्होंने मॉर्निंग वाक के दौरान एक लड़के को इसलिए थप्पड़ लगाया कि वो एक निम्न तबके की लड़की को छेड़ रहा था? नहीं,हम तभी पोस्ट करेंगे जब कोई बुरी घटना घट जाएगी.उस लड़के के बारे में क्यों पोस्ट नहीं करते जिसने अनजान होते हुए भी ट्रेन से टैक्सी तक आपका सामान पहुँचाने में मदद की और आपका नाम तक जानने की कोशिश नहीं की.… (हाँ तो इसमें कौन सी बड़ी बात है ये अक्सर होता है)…… ये तीनों ही बेहद सामान्य घटनाएँ है और हम सब के आस पास घटती हैं.…पर शायद हम इनकी सकारात्मकता को नज़रअंदाज़ करते हैं क्योंकि ये हमेशा होती हैं.हम नकारात्मक बातों पर इतनी जोरदार बहस करते हैं कि लगता है अब तो अच्छाई बची ही नहीं दुनिया में.
याद करिये अंतिम बार आपने/आपके किसी साथी ने /आपके परिवार के किसी सदस्य ने कब किसी लड़की को ईव टीजिंग से बचाने की कोशिश की थी.…… फर्क नहीं पड़ता आप महिला हैं या पुरुषं। यदि आपके लिए ये याद करना मुश्किल हो रहा है तो फिर आप क्यों अपेक्षा करते हैं कि कल कोई आपके साथ खड़ा होगा।बड़ी आसानी से हम कह देते हैं कि मेरे साथ ऐसा हो रहा था और लोग तमाशा देख रहे थे.…उस समय हम उन घटनाओं को क्यों भूल जाते हैं जहाँ हम मूकदर्शक बने हुए थे। सार्वजनिक स्थलों पर हम बड़े आराम से F वर्ड का इस्तेमाल करते हैं हमे LMAO पर आपत्ति नहीं है तो फिर कोई देशज भाषा में यही बातें करने वाला गंवार और ज़ाहिल कैसे हो गया ?? गलत शब्द तो किसी भी भाषा में हो गलत ही हैं.…पर हम सुधार की अपेक्षा हमेशा दूसरों से करते हैं.बेहतर है जब तक हम सुधर नहीं जाते शिकायत करना छोड़ें और सोशल मीडिया में बेकार का ढोंग करना बंद करें।

Saturday, April 13, 2013

फेसबुकिए सामाजिक


एक साहब थे ! चूँकि परिवार के अधिकतर सदस्यों से उम्र में बड़े थे और बोलते वक़्त किसी की नहीं सुनते थे इसलिए घर के लोग उनकी सुन लेते थे।छोटे मोटे ब्लॉग लिखकर अपने आप को बड़ा साहित्यकार समझते थे,जब भी मौका मिलता अर्ध ज्ञान धारा प्रवाहित करने से नहीं चूकते थे।फेसबुक में उनके वंशवृक्ष को देखकर यही परिलक्षित होता था कि इतने वृहद् परिवार में बड़े आत्मीय व्यक्ति हैं।जब भी कोई रिश्तेदार ऑनलाइन मिलता उसे खरी खोटी सुनाते कि तुम हमें ऑनलाइन देखकर भी पहले से शिष्टाचार नहीं करते हो...बदतमीज़ हो गये हो,२  ४ लाइक्स और कमेंट मिल जाने से घमंड आ गया है।मात्र २ ० ० फ्रेंड्स हैं और अपने आपको बड़ा सोशिअल समझते हो, हमारे हज़ार से ऊपर हैं तब भी हम विनम्र रहते हैं।तुम तो न किसी का स्टेटस लाइक करते हो न कमेन्ट  करते हो .....तो कोई तुम्हारे में क्यों करेगा भला ??बहुत अकड़ आ गई है। ..................
धीरे धीरे सारे रिश्तेदारों ने उन्हें ऑफलाइन कर दिया। इससे व्यथित होकर अब वह फेसबुक पर ही केक,पटाखों,फूल मालाओं में टैग करके त्यौहार मनाते  हैं .........उस पर आये कमेंट्स और लाइक्स से सामाजिक होने का दंभ भरते हैं।
बड़ी मज़बूरी में किसी शाम उन्हें एक समारोह में जाना पड़ा .......इनके सभी रिश्तेदार जो इनकी नजरों में अनसोशिअल थे वहां मौजूद लोगों से गप्पे लड़ा रहे थे और इन्हें कोई दुआ सलाम करने वाला भी नहीं मिल रहा था।जैसे तैसे इन्होंने कुछ देर रुकने की रस्म अदा की और लोगों की नज़रों से बचते हुए निकल लिए वापस अपने फेसबुक के तथाकथित सामाजिक जीवन में।

Friday, January 25, 2013

चेतन भगत और भैया जी

"अबे इ चेतन भगत कौन सा लेखक है ?" "भैया बड़ा लेखक है आजकल।का हुआ ? "अरे ट्रेन में कुछ रंगरूटों के साथ आना हो गया,इसिच्च का बात करते रहे पूरा टाइम!अउ पूरा किताब का नाम गिनती पे है वन,टू ,थ्री,फाइव और एक था 2020.!!" "भैया रिवोल्युशनरी 2020।" "हाँ वही, 2020 सुन के हमको लगा कि कलाम साहेब के साथ टियुनिंग है पर नहीं, बोले लव स्टोरी में थोड़ा भ्रष्टाचार है और कि रोलिंग के बाद यही सबसे फेमस है।" "भैया रोलिंग तो हम समझ गये पॉटर वाली।" "वो हमको पता है,हनुमान जी की माँ का नाम पूछें अभी तो नहीं पता होगा .....पर पॉटर का पूरा खानदान याद होगा।" "भैया आइआइटी और आइआइएम से पढ़ा है,बड़े बड़े नेताओं को अखबारों में खुले पत्र लिखता है।" "जब लिखना ही था तो एम ए कर लेता,सरकार का पैसा बर्बाद किया आइआइटी में।" "नहीं भैया आप समझे नहीं,बड़ी हस्ती है,बहुत लोग फॉलो करते हैं ट्विटर और फेसबुक पर उसे।हर मुद्दे पर प्रतिकिया देता है और सुझाव देता है।" "अच्छा ?" "रुकिए भैया जी एक मिनट! अरे रामदीन! वो पुराने अख़बारों से चेतन भगत का लेख छाँट के भैया के घर पँहुचा आना ज़रा।" "जी भैया।"
दो चार दिनों बाद तालाब किनारे-
"पढ़े का भैया चेतन भगत का लिखा हुआ ??" "अरे हाँ !! सिर्फ आदर्शवादी बात लिखता है,असलियत से कोई लेना देना नहीं! इसके लिए आइआइटी के पढ़ाई की का जरुरत? पीपल के नीचे हुक्का गुड़गुड़ाते रामखेलावन के पास इससे ज्यादा अच्छे सुझाव हैं,पर कभी अपनी जगह से हिले तब न।" "बात तो सही कह रहे हैं!! भैया,उ गोंदाबाई का बी पी एल कार्ड बनवाना था।" "चलो अभी हमरे साथ,सचिव के पास जा ही रहे हैं अउ तीन लोगों का काम निपटवाना है।"

भैया जी जैसे आदमियों से ही देश चल रहा है

Monday, December 3, 2012

काली साड़ी

सुबह से गाँव में हलचल है !! मीडिया वाले समारू के घर के पास डेरा जमाये बैठे हैं।एक कोतवाल के हवाले रहने वाले गाँव में आज थानेदार साहब भी मौजूद हैं .....व्यवस्था बनी हुई है।ठीक 10 बजे तीन गाड़ियों का काफिला पंहुचा।पुलिस से लेकर पत्रकारों तक ने अपनी जगह ले ली है।सफ़ेद स्कार्पियो से तीन संभ्रान्त महिलाएं उतरती हैं और पत्रकारों का हुजूम उन्हें घेर लेता है।थानेदार साहब स्वयं रास्ता बनाते हुए उन्हें समारू के घर तक ले जाते हैं,पूरा गाँव उसके आँगन में मौजूद है।चार दिन पहले समारू की पत्नी रमाबाई की हत्या हो गई है,शक के आधार पर समारू को ही जेल में डाला गया है।मैडम 1- "क्या सामने आया अब तक दरोगा जी?" "वही टोनही का शक मैडम,समारू परेशान था गाँव वालों की शिकायतों से ....उसके परिवार को जात बाहर करने की धमकी मिल रही थी,उसका कहना है परिवार के लिए उसने ये किया।" मैडम 2- "गाँव के और कौन लोग शामिल हैं इसमें ?" "हत्या तो बीच गाँव में हुई है पर कोई मुंह नहीं खोल रहा है,अब शक के आधार पर पूरे गाँव को तो अन्दर नहीं कर सकते ना मैडम।"
सम्पूर्ण जाँच पड़ताल के बाद महिला आयोग की इन सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अ
शिक्षा ही इस प्रकरण की मूल वजह है।शिक्षा के प्रसार से ही लोगों को जागरूक कर टोनही जैसी आशंकाओं से दूर रखा जा सकता है।मीडिया ने इनके उपदेशिक सम्भाषण को लाइव कवरेज दिया।
रवानगी के वक्त,"दरोगा जी वो आम की पेटी ?" "जी मैडम चार पेटी रखवा दिया है गाड़ी में, सभी वैरायटी के हैं ..!!"  गाड़ी वापस शहर की और दौड़ पड़ी हैमैडम 2-"हमारे यहाँ साहब को बहुत पसंद हैं यहाँ के आम।" मैडम 1- "पिकनिक के लिए कितनी मस्त जगह है,आते हैं किसी दिन कहीं आसपास ... फैमिली को लेकर।" मैडम 3-"नई बाबा!!कौन आएगा दुबारा इस गाँव में!!" "क्यों?और आपने इतनी गर्मी में काली साड़ी क्यों पहनी है आज ?" "जादू टोने वाला गाँव है बुरी नज़र से बचने का उपाय तो करना ही पड़ता है।"
ड्राईवर ने सोचा 'मैडम ने कथनी(भाषण) और करनी में अच्छा तालमेल कायम किया है !!'
 

Friday, November 30, 2012

फेसबुक के शेर

मेरे कॉलेज के दिनों के एक मित्र हैं, जो फेसबुक पर काफी सक्रिय रहते हैं।सक्रियता से मेरा तात्पर्य दोस्तों की पोस्ट पर अनावश्यक कमेंट,लाईक या चैटिंग से नहीं है .......नहीं!! इस मामले में उनका FB profile स्पष्ट रूप से मितभाषी प्रतीत होता है।परन्तु देशप्रेम से ओतप्रोत हर तरह के पोस्ट को वो जरुर शेयर करते हैं,चाहे वो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई पोस्ट हो,लोकपाल से संबधित,सिविल सोसाइटी के आंदोलनों से सम्बंधित,कई तरह के घोटालों से सम्बंधित,विभिन्न क्रांतिकारियों व देशभक्त नेताओं की पोस्ट आदि।यहाँ तक की भ्रष्टाचारी नेताओं की मोर्फिंग की हुई विकृत तस्वीरों को भी वो शेयर करने से नहीं चूकते ......ये उनका और उनके जैसे तमाम लोगों का विरोध प्रदर्शन का अपना तरीका है .......उनकी प्रोफाइल देखकर ही "देश की व्यवस्था" को बदलने की उनकी उद्विग्नता से आप वाकिफ हो जायेंगे।
चूँकि मेरे ही शहर के हैं तो इस दीपावली की छुट्टियों में उनसे काफी दिनों बाद मिलना हुआ।बातों बातों में पता चला उनका मतदाता पहचान पत्र अभी तक नहीं बना है।संयोग से चुनावों को मद्देनजर रखते हुए पूरे प्रदेश में मतदाता पहचान पत्र जारी करने के लिए केंद्र बनाये गए थे,मैंने कहा "एक दिन एप्लीकेशन दे आ यार।"बोले "अरे छोड़ यार !! मुश्किल से 4 दिन की छुट्टी मिली है फ़ोकट के काम में वेस्ट नहीं कर सकता ......इलेक्शन के पहले घर घर जाकर नाम जोड़ते ही हैं इन लोग,उस समय देखेंगे और वैसे भी बैंगलोर से इतनी दूर सिर्फ वोट डालने के लिए थोड़ी आऊंगा ....वोटर id न बने अभी तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।" 
घर आकर फेसबुक में ऑनलाइन हुआ तो फिर इन्हीं महाशय का एक पोस्ट था अब्दुल कलाम साहब द्वारा दिए वाक्य के साथ "what can i give to my country" ......सोचा फिलहाल तो एक सही वोट ही दे दें, तो शायद देश में कुछ बदलाव आ जाये, बातें और पोस्ट तो शेयर होती रहेंगी।
फेसबुक के शेरों से उम्मीद है शिकार करने(वोट डालने )अपनी गुफा से बाहर निकलेंगे।

Thursday, November 29, 2012

पढ़ेगा भारत तभी बढ़ेगा भारत

दिल्ली में अपने कमरे में बैठा कुरुक्षेत्र मैगज़ीन का ग्रामीण शिक्षा विशेषांक पढ़ रहा था।विभिन्न सरकारी योजनाओं की व्यापक सफलताओं का वर्णन करते हुए, "पढ़ेगा भारत तभी बढ़ेगा भारत "जैसे वाक्यों के साथ बुद्धिजीवियों के लेख थे।साथ में कई फोटोग्राफ भी संलग्न थे, जिन्हें देखकर मैं अचंभित हो रहा था .....उसमें शाला में लाइन से बैठे बच्चे चमचमाती एक जैसी थालियों में पुड़ी,खीर,पापड़,आचार का सेवन कर रहे थे।दूसरी फोटो में सभी बच्चे ड्रेस में थे,प्राइमरी के बच्चे टेबल और बेंच में बैठकर पढ़ रहे थे।एक फोटो में ग्रामीण बच्चे कंप्यूटर पर खिटपिट करते दिखे ........लेखों में दर्शाया तो यही गया कि सभी सरकारी शालाओं में कमोबेश यही स्थिति है,कई हज़ार करोड़ की योजनाओं का हवाला देते हुए यही साबित करने की कोशिश थी कि अब देश में सुदूर अंचलों  में भी 14 वर्ष तक के हर बच्चे को यही सुविधा उपलब्ध है और देश उन्नति की ओर अग्रसर है।अनायास मुझे अपने गृह राज्य की प्राथमिक शाला का ख्याल आ गया ....वहां बच्चे ड्रेस में तो कभी नहीं दिखे !! खुद ही घर से एक थाली लेकर आते हैं और भोजन के नाम पे जो (चावल और कभी कभी मिलने वाली सब्जी अन्यथा कढी से ही काम चलाया जाता है ) परोसा जाता है, उसे खाकर एक साथ बर्तन धोने जाते हैं,ये पूरा कार्यक्रम 2 से 3 घंटे तक चलता है,ऐसे में पढाई का तो भगवन ही मालिक है । बेंच तो दूर की बात कुछ क्लास में दरी भी नहीं है।
मुझे लगा शायद विकसित राज्यों में ये योजनायें सफल हैं और ये तस्वीरें वहां की हैं।मुझे अपने राज्य के पिछड़े होने का एहसास हुआ ....मेरे राज्य को सरकारी योजनाओं का सही लाभ क्यों नहीं मिल पा रहा है, इसके राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक पहलुओं के बारे में विचार करता उससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हुई।पसीने से भीगा हुआ, मटमैले कपड़ों में 10-11 वर्ष का एक बालक मेरा टिफ़िन लेकर आया था,मेरे पूछने पर बताया अब से दद्दा नहीं आएंगे मैं ही टिफ़िन पहुंचाऊँगा।उसे स्कूल ड्रेस पहने देखकर मेरा कौतुहल बढ़ा, किसी पब्लिक स्कूल का ड्रेस था।मैंने पूछा तुम्हारे स्कूल का ड्रेस है ये ??नहीं मैं स्कूल नहीं जाता .....और शर्माता हुआ सीढियों पे दौड़ गया,उसे और भी जगह टिफ़िन पहुँचाना था।
विडम्बना ही है कि इन तमाम योजनाओं से वंचित ये बालक  इन योजनाओं 
को मूर्त रूप देने वाली संसद से 4 km की दूरी पर ही रहता है।